Sunday, 3 November 2019

तारागढ़ की कहानी

तारागढ़ की कहानी

जावेद शाह की जुबानी

*बेऔलादों को औलाद और कुंवारों को मिलता है जीवनसाथी
*राजस्थान के अजमेर शहर में तारागढ़ की पहाड़ी पर हजरत मीर हुसैन सय्यद खिंग सवार रह0 की मजार है ।*
यह मज़ार अजमेर की सबसे ऊंची जगह पर है ।
अजमेर शहर राजस्थान का ह्रदय है और तारागढ़ पहाड़ अजमेर का दिल है ।
गरीब नवाज की दरगाह से दक्षिण दिशा में आसमान से बातें करता ये पहाड़ जमीन से करीब 3 हजार फीट की ऊँचाई पर अरावली की चोटी पर स्थित है।  इतिहासकार इसे *अरावली का अरमान* भी कहते है। तारागढ़ नाम तो बहुत बाद में  सन 1505 में रखा गया । चित्तौड़ के राजा राणा साँगा के भाई *पृथ्वीसिंह सिसोदिया ने अपनी पत्नी ताराबाई* के लिए यहां महल और किला बनवाया । इस रानी के नाम से इस पहाड़ का वर्तमान नाम मशहूर हुआ।
अजमेर के पहले शासक अजय सिंह चौहान ने सन 1113 ईसवी में *'गढ़ बिठली'* नामक इस पहाड़ पर किला बनवाया जिसका नाम पहाड़ी के नाम से 'गढ़ -बिठली' रखा ।
लेकिन आम जनता ने राजा अजयसिंह के नाम से इस पहाड़ को *अजयमेरु* कहा जिसका मतलब अजय का पहाड़ होता है।इस तरह इस इलाके का नाम अजयमेरु पड़ गया जो बाद में अजमेर हुआ।
1192 में पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद मोहम्मद गौरी ने तारागढ़ किले का किलेदार हजरत मीर हुसैन सैयद खिंग सवार को बना दिया।
*हजरत मीर हुसैन के घोड़े का नाम खिंग था। इसलिए उन्हें खिंग(घोड़ा) सवार भी कहते है।*
सन 1210 में लाहौर में पोलो खेलते समय कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो गई । हारे हुए काफिरों ने मौका देखकर तारागढ़ को हासिल करने के लिए बेवक़्त हमला कर दिया । अचानक हुए हमले में हजरत मीर हुसैन सय्यद खिंग सवार जंग करते हुए अपने घोड़े और साथियों सहित शहीद हो गए।
गरीब नवाज को शहादत की खबर लगी। आपने मीर हुसैन को तारागढ़ की सबसे ऊंची जगह पर दफ़्न किया और बाकी साथियों को नीची जगह। उनके घोड़ों को भी शहीद हो जाने पर दफ़नाया गया। *सारे हिंदुस्तान में घोड़े की मजार सिर्फ तारागढ़ पहाड़ी पर ही मिलेगी।* एक पत्थर भी है जिसे बाबा ने अपनी उंगली , घोड़े के चाबुक और घोड़े के घुटने से रोक दिया था , आज भी वो पत्थर तारागढ़ पहाड़ी पर मौजूद है और उस पर इन 3 चीजों के निशान भी घटना की याद दिलाते है।
हजरत मीर हुसैन सैयद के उर्स 16 से 18 रजब तक मनाए जाते है । *उर्स में रंग के दौरान हजरत मीर सय्यद बाबा की मजार की दीवारें फ़ज़र के वक्त शहादत की  जलाल से हिलती है* और पहाड़ पर *घोड़े की टापों की आवाज़ें भी सुनाई देती है।*
मीर हुसैन बाबा की दरगाह के सहन में *700 साल पुराना एक लाल गोंदी का पेड़ हैं* जिसे सय्यद मीरां बाबा ने दुआ दी जिसकी वजह से यह पेड़ सालभर फलों से लदा रहता है । कुदरत का कमाल है इस फल को जो भी बेऔलाद महिला खा ले उसकी सुनी गोद भर जाती है। मीर बाबा की दरगाह की मेहंदी अगर कुंवारे लड़के-लड़कियां लगा लेते है और दुआ करते है । करिश्माई रूप और अल्लाह के करम से उनके रिश्ते हो जाते है। सय्यद मीरां बाबा की ये 2 करामातें बहुत मशहूर है।
एक मर्तबा एक हिजड़े ने गोंदी का फल खाकर गरीब नवाज से औलाद की दुआ की। उस *हिजड़े को औलाद हुई।* उस हिजड़े की।मजार भी अजमेर में है।
बहुत से करिश्में तारागढ़ से जुड़े है। *इंदिरा गांधी ने आपातकाल के बाद मन्नत मांगी थी* कि कांग्रेस की वापसी पर तारागढ़ जाने वाला रास्ता पक्का बनवा दूंगी । इंदिरा गांधी ने जीतने के बाद रास्ता बनवाकार कुछ हद तक वादा भी निभाया। कहते है *कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पंजा* इन्ही पंजतन की निशानी है ।
तारागढ़ की पहाड़ी से नीचे की तरफ नज़र दौड़ाने पर *किले की दीवारें भारत के नक्शे जैसी दिखाई देती है* । 900 साल पहले बनी दीवारों में भारत का नक्शा अपने आप में एक रहस्य और अजूबा है। ये दीवारें मैंने (जावेद शाह ) देखी है।
अगली बार जब भी अजमेर जाए इन करिश्मों को देखना न भूले।
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Wednesday, 23 October 2019

Javed Shah Khajrana

Javed shah khajrana

Javed shah Khajrana

Javed Shah is a famous writer, poet, storyteller, photographer, historian and descendant of Khadim Khas Mujawars and heirs of Sufi Abdullah Shah Biyabani. Javed Shah Khajrana currently resides in Indore city of Madhya Pradesh. He was born on 5 September 1978 in Juni Indore. He has also received the National Award on Poetry twice. In Khajrana, Indore, Sufisant is the grandson of Naharshah Wali Raht and the Mujawars.

Javed Shah Khajrana

 In the era of Ibrahim Lodhi, his ancestor Naseeruddin Shah Chishti Rah arrived in Mandav from Delhi to spread Islam with his fellow famous Sufi Abdullah Shah Biyabani. Sultan of Mandava, Ghiyasuddin Khilji, gave you a grand welcome well and on request of him gave the manor of Chhatri village near Mandav to you. Hazrat Abdullah Shah Biyabani spread the religion of Islam by staying in Chitri village. In your time Islam spread rapidly in Nimar. After your death you were buried in Chitri village and there is your Dargah as a memorial today. After Abdullah Shah Biyabani, his dargah and fiefdom came under the supervision of his companion Hazrat Naseeruddin Shah Chishti Rah. You are a special companion of Abdullah Shah Biyabani and first Khadim. The Dargah of Hazrat Naseeruddin Chishti remains in good faith of the steps of Hazrat Abdullah Shah Biyabani.

It is about 1500 AD.
Javed Shah Khajrana is from the 25th generation of the same Nasiruddin Shah Chishti. His father's maternal grandfather lived in Dhar and Kalibawadi. His father Akbar Ali Shah, father of Fatma, the mother of Mahmud Ali, was the manager of this dargah in 1955.
Javed shah khajrana

Sunday, 6 August 2017

Sultan Mehmood Shah Khilzi Tomb__Dhar City



               शहंशाह जो दफ्न है फ़क़ीर (शाह ) की चौखट पर

  •          जूते -चप्पल की जगह दफ्न है मांडव का सुल्तान